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खास बातें
- ओलिंपिक 2020 में भारत को है शूटरों से उम्मीद
- सालभर देश के युवा शूटर्स ने सफलताएं हासिल की
- अब तक 15 शूटर हासिल कर चुके हैं ओलिंपिक कोटा
शूटिंग या निशानेबाजी (Shooting)ऐसा खेल है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को काफी सफलताएं दिलाता रहा है. कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में भारतीय शूटरों ने अपने सटीक निशानों से कई बार धाक जमाई है. ओलिंपिक में भी भारत के लिए इंडिविजुल इवेंट का अब तक का एकमात्र गोल्ड मेडल शूटिंग में अभिनव बिंद्रा ने ही जीता है. उनके अलावा राज्यवर्धन राठौड़ भी ओलिंपिक खेलों में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीत चुके हैं. भारतीय शूटरों की श्रेष्ठता का यह सिलसिला वर्ष 2019 में भी जारी रहा. इस वर्ष भारतीय शूटरों ने इंटरनेशनल इवेंट में अपना दबदबा इस कदर बनाया कि कुछ अवसरों पर तो विश्व स्तरीय इवेंट भी किसी घरेलू टूर्नामेंट जैसी लगीं. सबसे अच्छी बात यह हैं कि भारत से कई युवा शूटर उभरकर सामने आए हैं. उम्मीद है कि शूटर इसी वर्ष टोक्यो में होने वाले ओलिंपिक खेलों में देश को कुछ मेल्डस की सौगात देंगे. महिला वर्ग में मनु भाकर और इलावेनिल वलारिवान और पुरुष वर्ग में सौरभ चौधरी को बेहद प्रतिभावान माना जा रहा है.
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वर्ष 2019 में भारत ने राइफल- पिस्टल वर्ल्डकप और फाइनल्स में कुल मिलाकर 21 गोल्ड, छह सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज मेडल जीते. भारत निशानेबाजी में अभी तक 15 ओलिंपिक कोटा हासिल कर चुका है जो कि रिकॉर्ड है और जिससे देश की इस खेल में भारतीय शूटरों की श्रेष्ठता का अहसास लगाया जा सकता है. ओलिंपिक खेलों की बात करें तो भारतीय शूटर्स अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन लंदन ओलिंपिक-2012 में रहा है जब भारत ने दो मेडल जीते थे. इस वर्ष के भारतीय शूटरों के शानदार प्रदर्शन से टोक्यो ओलिंपिक में इस प्रदर्शन को और बेहतर बनाने की उम्मीद बंधी है.
रियो के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (NRAI) ने कुछ कड़े फैसले किए थे. इसमें ओलिंपिक खेलों से पहले किसी तरह का वित्तीय करार नहीं करना भी शामिल है. यह निशानेबाजों की ध्यान भंग होने से बचने के लिये किया गया. भले ही कुछ निशानेबाजों को यह फैसला नागवार गुजरा लेकिन रियो के बाद अगर भारतीय निशानेबाजों ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया तो इसका श्रेय एक हद तक NRAI को भी जाता है जिसने अभिनव बिंद्रा की अगुवाई वाली समिति के सुधारात्मक उपायों को गंभीरता से लिया. NRAI ने जसपाल राणा और समरेश जंग जैसे अनुभवी निशानेबाजों की मदद से जूनियर कार्यक्रम को अच्छी तरह से व्यवस्थित किया. इससे देश को मनु भाकर (Manu Bhaker), सौरभ चौधरी (Saurabh Chaudhary), दिव्यांश सिंह पंवार (Divyansh Singh Panwar) और इलावेनिल वलारिवान (Elavenil Valarivan) जैसे निशानेबाज मिले. इन जूनियर के शानदार खेल तथा संजीव राजपूत और तेजस्विनी सावंत जैसे शीर्ष खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन से भारत इस साल सभी वर्ल्डकप की मेडल टैली में शीर्ष पर रहा.
भारत ने महिलाओं के दस मीटर में लगातार दबदबा बनाये रखा. अपूर्वी चंदेला (Apurvi Chandela), अंजुम मोदगिल (Anjum Moudgil) और इलावेनिल (Elavenil Valarivan) वर्ष के आखिर में क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरी रैंकिंग पर रही. संजीव राजपूत ने लंबी छलांग लगाई. उन्होंने रियो वर्ल्डकप में पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में रजत और ओलिंपिक कोटा हासिल किया और 75 पायदान की छलांग लगाकर आठवें स्थान पर पहुंचे. भारत ने सितंबर में रियो वर्ल्डकप में पांच गोल्ड मेडल जीते जबकि पुतियान (चीन) में वर्ल्डकप फाइनल्स में तीन स्वर्ण पदक हासिल किये जिससे पता चलता है कि यह खेल सही दिशा में आगे बढ़ रहा है. निशानेबाजों से उम्मीद है कि वे टोक्यो में भी अपनी शानदार फॉर्म जारी रखेंगे लेकिन इससे पहले उन्हें अपना मनोबल बढ़ाने के लिये कुछ अन्य प्रतियोगिताओं में पदक जीतने का मौका मिलेगा. इनमें से एक अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी खेल महासंघ (ISSF) वर्ल्डकप भी है जो फरवरी में नई दिल्ली में खेला जाएगा. भारतीय शूटरों के लिए यह एक तरह से टोक्यो ओलिंपिक से पहले अपनी क्षमता को परखने का मौका है. भारतीय निशानेबाज जब रेंज पर अपना जलवा दिखा रहे थे तब भारत ने 2022 बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स से निशानेबाजी हटाने के राष्ट्रमंडल खेल महासंघ (CGF) के फैसले का कड़ा विरोध भी किया. भारत और आईएसएसएफ के दबाव के बावजूद सीजीएफ ने अपना फैसला नहीं बदला है.
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